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भारत छोड़ो कई प्रकार का होता है (व्यंग्य)

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भारत छोड़ो आंदोलन पर आयोजित निबंध प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार विजेता निबंध इस प्रकार है-

भारत छोड़ो कई प्रकार का होता है।

जून-जुलाई के महीने में कई नौजवान भारत छोड़कर ऑस्ट्रेलिया चले जाते हैं, क्योंकि इन नौजवानों को दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेजों में ऐडमिशन नहीं मिल पाता है। इनका भारत छोड़ो इनकी मजबूरी है क्योंकि ऑस्ट्रेलिया में हर किसी को ऐडमिशन मिल जाता है। मिल ही नहीं जाता, बहुत इज्जत से मिल जाता है। दिल्ली में सबकी इज्जत नहीं हो पाती। पगड़ी अपनी संभालिएगा मीर, और बस्ती नहीं ये दिल्ली है। बड़े शायर मीर अपनी पगड़ी को लेकर परेशान रहते थे, कई छात्र ऐडमिशन लेकर परेशान रहते हैं।

भारत छोड़ो आंदोलन का एक और स्वरूप हमें स्विस खातों के रूप में देखने में आता है। बहुत बड़ी रकम भारत छोड़ जाती है और स्विस खातों में जमा रहती है। इसे वापस लाने की बात चलती रहती है। चलती ही रहती है। बातों से अगर स्विस बैंक की रकम वापस आ गई होती, तो समझना चाहिए कि बातें तो इतनी हो चुकी हैं कि स्विस बैंकों में जमा दूसरे देशों की रकमें भी इंडिया वापस आ जातीं।

इधर, फिल्मों ने भी भारत छोड़ो मचा दिया है। फिल्म ‘दंगल’ चीन में बहुत चली, फिल्मों के भारत छोड़ो मचाने का रास्ता खुल गया है। बहुत संभव है कि तमाम भारतीय फिल्मों के कैरक्टर भी चाइनीज होने लग जाएं। मुल्क को चाइनीज फोनों से नहीं बचाया जा सकता, चाइनीज कैरक्टरों से भी नहीं बचाया जा सकता। कमाना है, तो इंडियन फिल्मों को चाइनीज होना पड़ेगा और चाइनीज फोन तो इंडियन हो ही गए हैं।

क्रिकेट प्रतियोगिताएं स्पॉन्सर करने के बाद चाइनीज फोन अब लोकल कीर्तन, हरियाणवी रागिनी प्रतियोगिता, ब्रज के रसिया आयोजन और भोजपुरी बिरहा दंगल भी स्पॉन्सर करने वाले हैं। चाइनीज भोजपुरी में मिल जाइगी फोन के धंधे के जरिए और आमिर खान चाइनीज हो लेंगे फिल्म के धंधे के जरिए। धंधे में जोड़ने की ताकत होती है। जहां से रकम मिलती है, बंदा खुद ब खुद जुड़ लेता है।

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का तो प्रफेशनल हक है कि वह भारत छोड़कर विदेशी दौरों पर रहें, पर वह ऐसा नहीं कर पातीं क्योंकि पीएम मोदी ही सतत भारत छोड़ो मचाए रहते हैं।


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